मुख्यमंत्री पद और सीटों की खींचतान के चलते बिहार में भाजपा का ‘मिशन 185’ मुश्किल में पड़ सकता है। पटना में वीरवार को परिवर्तन रथ को झंडी दिखाने के लिए आयोजित कार्यक्रम में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के साथ घटक दलों के प्रमुखों को भी मंच पर जगह दी गई थी। संदेश था राजग की एकजुटता का, लेकिन इस संदेश पर संदेह पैदा कर रही थी बिहार के कुछ नेताओं खासकर शत्रुघ्न सिन्हा की अनुपस्थिति।
प्रधानमंत्री के दौरे से पहले बिहार में यह भाजपा का सबसे बड़ा कार्यक्रम था। शाह ने बड़े पैमान पर चुनाव प्रचार अभियान की औपचारिक शुरुआत की, लेकिन बारिश में जमे समर्थकों की निगाहें ‘बिहारी बाबू’ शत्रुघ्न सिन्हा को ढंूढती रही। अपने बागी तेवरों को लेकर सिन्हा आए दिन भाजपा नेतृत्व के लिए मुसीबत खड़ी करते रहे हैं। सिन्हा ने गांधी मैदान न आने का कारण साफ नहीं बताया, बल्कि अपने अंदाज में एक शेर का अंश जरूर कह दिया-‘वक्त आने दे बता देंगे तुझे ए आसमां।’ अगर इस शेर की अगली पंक्ति-‘हम अभी से क्या बताएं, क्या हमारे दिल में है’- को याद करें तो शत्रु भइया की मंशा समझी जा सकती है।
यह पहली बार नहीं है कि शत्रुघ्न सिन्हा ने पार्टी नेतृत्व के माथे पर बल ला दिए हों। हाल ही में लालू के जन्मदिन पर उन्हें शुभकामना देने उनके आवास पहुंच शत्रुघ्न ने सियासत में कई सवाल खड़े कर दिए थे। विधानपरिषद चुनाव में भाजपा की जीत के जश्न को वह न इतराने की नसीहत देकर फीका कर चुके हैं। परिवर्तन रथों पर अपनी तस्वीर न होने के लिए भी वह साफ शब्दों में नाराजगी जता चुके हैं।
भाजपा नेतृत्व ने साफ कर दिया है कि बिहार में सीएम पद के नेता की घोषणा चुनाव से पहले नहीं की जाएगी। शायद शीर्ष नेतृत्व भी नेताओं की महत्वाकांक्षाओं से वाकिफ है और चुनाव से पहले किसी दरार को उभरने से रोकने के लिए ही ऐसा फैसला किया गया है। दिल्ली में चुनाव से ऐन पहले किरण बेदी को सीएम प्रत्याशी घोषित करने का परिणाम भाजपा पहले ही देख चुकी है। शत्रुघ्न सिन्हा सीएम पद की घोषणा की मांग कई बार कर चुके हैं। आमतौर पर पटना आते-जाते रहने वाले सिन्हा काफी दिनों से वहां जमे हैं। वह लगातार स्थानीय नेताओं से मुलाकात कर रहे हैं। पिछले दिनों वह राज्यसभा सांसद आरके सिन्हा से मिलने उनके आवास पर गए। माना जा रहा है कि वह कायस्थ नेताओं को एकजुट करने की मुहिम में जुटे हैं। अगर सिन्हा अपने को कायस्थ नेता के रूप में प्रोजेक्ट करने में सफल रहे तो उनका पलड़ा भारी हो सकता है। बिहार में इस बार जब वोटों की लड़ाई दशमलव प्रतिशत तक पहुंच गई है तब कायस्थों के 1.5 प्रतिशत मत के साथ सिन्हा अपनी मंशा को लेकर मैदान में उतर सकते हैं।
प्रदेश में भाजपा के दूसरे बड़े नेता सीपी ठाकुर भी ऐसी मांग कर चुके हैं। सिन्हा से एक कदम आगे बढ़ते हुए ठाकुर मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी दावेदारी जता चुके हैं। पार्टी में अलग-अलग नेताओं के लिए भी दबे छिपे आवाजें उठती रही हैं।
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| नवोदय टाइम्स के 18 जुलाई के अंक में प्रकाशित खबर। |


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