नरेंद्र मोदी सरकार 100 दिन पूरे कर चुकी है। बदलाव के नारे और अच्छे दिन लाने के वादे कर सत्ता में आने वाली सरकार के सौ दिनों के कामकाज और खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बातों पर गौर किया जाए तो साफ हो जाएगा कि सरकार तकनीक की तदबीर से तकदीर बदलने की कोशिश कर रही है।
लोकसभा चुनाव में बहुमत हासिल करने के बाद से ही मोदी ने रूढिय़ों को तोडक़र नई रवायत शुरू करने का साफ संकेत दे दिया था। संसद की सीढिय़ों को नमन करना हो, शपथ ग्रहण में पड़ोसी देशों को आमंत्रित करना या कार्यभार संभालते ही अधिकारियों से सीधा संवाद, मोदी ने बता दिया कि अब सबकुछ वैसा नहीं चलेगा जैसा अब तक चलता आया है। पूर्ववर्ती यूपीए सरकार पर ‘नीतिगत निष्क्रियता’ का आरोप लगाने वाले मोदी किसी मसले पर त्वरित निर्णय लेते हैं और अपने अमले को तुरंत कार्रवाई का आदेश देते हैं। अब मंत्री और वरिष्ठ नौकरशाह सीधे प्रधानमंत्री से संवाद और आदेश प्राप्त कर सकते हैं। मनमोहन सिंह सरकार के कार्यकाल में 62 मंत्री समूह (जी.ओ.एम.) और मंत्रियों को अधिकार प्राप्त समूह (ई.जी.ओ.एम.) थे, उन्हें खत्म कर दिया गया है। अब शायद ही कोई मसला जी.ओ.एम. के पास भेजा जाता है। कानूनी मामलों के त्वरित समाधान के लिए मोदी सरकार ने नेशनल डाटा लिटिगेशन ग्रिड की स्थापना की है। नरेंद्र मोदी सरकार की दृढ़ इच्छाशक्ति और कड़े फैसले लेने का सबसे बड़ा उदाहरण है योजना आयोग का खात्मा। स्वतंत्रता दिवस पर पहली बार लाल किले पर ध्वज फहराने वाले मोदी ने भारत के गणतंत्र होने के वर्ष गठित हुई और राष्ट्र के विकास की रूपरेखा गढ़ती आई संस्था को खत्म करने की घोषणा कर साफ कर दिया कि यह सरकार मजबूत निर्णय करने में हिचकती नहीं है।
नई सरकार का तकनीक पर खासा जोर है। शपथ ग्रहण के बाद ही मंत्रियों को सोशल मीडिया पर आकाउंट बनाने और सूचनाएं साझा करने का फरमान सुना दिया गया था। प्रधानमंत्री ने भी अपना नया ट्विटर हैंडल बनाया और हर मामले-मौके पर उनके ट्वीट्स आने लगे। बाद में कई मंत्रियों और मंत्रालयों ने सोशल मीडिया पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। इसके पीछे सोच शायद यह है कि सूचनाएं सार्वजनिक करने से भ्रष्टाचार पर अंकुश लग सकेगा, कार्य निष्पादन में तीव्रता आएगी और सरकार के प्रति एक सकारात्मक जनमानस का निर्माण होगा। अपने सौ दिनों के कार्यकाल में सरकार अपनी इस कोशिश में काफी हद तक सफल रही है।
सरकार गठन के साठ दिन पूरे होने पर सरकार ने ‘माई गॉव’ नामक एक वेबसाइट बनाई। इस साइट पर जाकर लोग सीधे सरकार से अपनी बात कह सकते हैं। तय विषयों पर अपनी राय तो दे ही सकते हैं, बहस-विमर्श भी कर सकते हैं। अभी लोगों से यह पूछा गया था कि योजना आयोग के स्थान पर वह किस प्रकार की संस्था चाहते हैं। इसका नाम क्या हो, टैगलाइन और लोगो किस प्रकार का हो, यह भी पूछा गया है। डिजिटल इंडिया के लिए लोगो डिजाइन करने की प्रतियोगिता भी रखी गई है। विजेता को 50 हजार रुपये का नगद इनाम दिया जाएगा। इससे पहले स्वतंत्रता दिवस पर ई-ग्रीटिंग्स प्रतियोगिता भी कराई गई थी। वेबसाइट पर ओपन फोरम भी है, जहां कोई भी नागरिक किसी मुद्दे पर अपनी राय दे सकता है। ‘भागीदारी से भरोसा’ का यह अनूठा प्रयास है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद तकनीक की ताकत के मुरीद हैं। नई तकनीक से अवगत होना और जनयोजनाओं के लिए उसका इस्तेमाल वह बखूबी जानते हैं। तभी तो उनके हर भाषण-संबोधन में तकनीकी विकास पर जोर होता है। लालकिले की प्राचीर से भी मोदी ने ‘ई-गवर्नेंस, इजी गवर्नेंस’ की बात कही थी। अपने इस वादे को निभाते हुए सरकार ने विभिन्न परियोजनाओं वाले ‘डिजिटल इंडिया’ कार्यक्रम को मंजूरी दी और इसके लिए एक लाख करोड़ रुपये भी दिए। इसका लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि सरकारी सेवाएं नागरिकों को इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से उपलब्ध हों और लोगों को नवीनतम सूचना व संचार प्रौद्योगिकी का लाभ मिले। ‘डिजिटल इंडिया’ के तहत सरकार का लक्ष्य आईसीटी ढांचे का निर्माण करना है, जिससे ग्राम पंचायत स्तर पर हाईस्पीड इंटरनेट उपलब्ध कराया जा सके। स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी सरकारी सेवाएं मांग के अनुरूप उपलब्ध हों और डिजिटल माध्यम से साक्षरता के जरिए नागरिकों को सशक्त बनाया जा सके। राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस प्लान के बदले स्वरूप में पेश ‘डिजिटल इंडिया’ परियोजना के तहत ब्रॉडबैंड हाइवे, हर जगह मोबाइल कनेक्टिविटी, सार्वजनिक इंटरनेट एक्सेस, ई-गवर्नेंस, सभी के लिए सूचना, इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण, नौकरियों के लिए आईटी आदि शामिल हैं। मोदी सरकार अपने उद्देश्य में कितना सफल हो पाएगी, यह इस वक्त तो नहीं कहा जा सकता लेकिन इतना तो तय है कि बदलाव की एक सकारात्मक शुरुआत हो चुकी है जो देश और जन को एक नई दिशा देगा।
लोकसभा चुनाव में बहुमत हासिल करने के बाद से ही मोदी ने रूढिय़ों को तोडक़र नई रवायत शुरू करने का साफ संकेत दे दिया था। संसद की सीढिय़ों को नमन करना हो, शपथ ग्रहण में पड़ोसी देशों को आमंत्रित करना या कार्यभार संभालते ही अधिकारियों से सीधा संवाद, मोदी ने बता दिया कि अब सबकुछ वैसा नहीं चलेगा जैसा अब तक चलता आया है। पूर्ववर्ती यूपीए सरकार पर ‘नीतिगत निष्क्रियता’ का आरोप लगाने वाले मोदी किसी मसले पर त्वरित निर्णय लेते हैं और अपने अमले को तुरंत कार्रवाई का आदेश देते हैं। अब मंत्री और वरिष्ठ नौकरशाह सीधे प्रधानमंत्री से संवाद और आदेश प्राप्त कर सकते हैं। मनमोहन सिंह सरकार के कार्यकाल में 62 मंत्री समूह (जी.ओ.एम.) और मंत्रियों को अधिकार प्राप्त समूह (ई.जी.ओ.एम.) थे, उन्हें खत्म कर दिया गया है। अब शायद ही कोई मसला जी.ओ.एम. के पास भेजा जाता है। कानूनी मामलों के त्वरित समाधान के लिए मोदी सरकार ने नेशनल डाटा लिटिगेशन ग्रिड की स्थापना की है। नरेंद्र मोदी सरकार की दृढ़ इच्छाशक्ति और कड़े फैसले लेने का सबसे बड़ा उदाहरण है योजना आयोग का खात्मा। स्वतंत्रता दिवस पर पहली बार लाल किले पर ध्वज फहराने वाले मोदी ने भारत के गणतंत्र होने के वर्ष गठित हुई और राष्ट्र के विकास की रूपरेखा गढ़ती आई संस्था को खत्म करने की घोषणा कर साफ कर दिया कि यह सरकार मजबूत निर्णय करने में हिचकती नहीं है।
नई सरकार का तकनीक पर खासा जोर है। शपथ ग्रहण के बाद ही मंत्रियों को सोशल मीडिया पर आकाउंट बनाने और सूचनाएं साझा करने का फरमान सुना दिया गया था। प्रधानमंत्री ने भी अपना नया ट्विटर हैंडल बनाया और हर मामले-मौके पर उनके ट्वीट्स आने लगे। बाद में कई मंत्रियों और मंत्रालयों ने सोशल मीडिया पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। इसके पीछे सोच शायद यह है कि सूचनाएं सार्वजनिक करने से भ्रष्टाचार पर अंकुश लग सकेगा, कार्य निष्पादन में तीव्रता आएगी और सरकार के प्रति एक सकारात्मक जनमानस का निर्माण होगा। अपने सौ दिनों के कार्यकाल में सरकार अपनी इस कोशिश में काफी हद तक सफल रही है।
सरकार गठन के साठ दिन पूरे होने पर सरकार ने ‘माई गॉव’ नामक एक वेबसाइट बनाई। इस साइट पर जाकर लोग सीधे सरकार से अपनी बात कह सकते हैं। तय विषयों पर अपनी राय तो दे ही सकते हैं, बहस-विमर्श भी कर सकते हैं। अभी लोगों से यह पूछा गया था कि योजना आयोग के स्थान पर वह किस प्रकार की संस्था चाहते हैं। इसका नाम क्या हो, टैगलाइन और लोगो किस प्रकार का हो, यह भी पूछा गया है। डिजिटल इंडिया के लिए लोगो डिजाइन करने की प्रतियोगिता भी रखी गई है। विजेता को 50 हजार रुपये का नगद इनाम दिया जाएगा। इससे पहले स्वतंत्रता दिवस पर ई-ग्रीटिंग्स प्रतियोगिता भी कराई गई थी। वेबसाइट पर ओपन फोरम भी है, जहां कोई भी नागरिक किसी मुद्दे पर अपनी राय दे सकता है। ‘भागीदारी से भरोसा’ का यह अनूठा प्रयास है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद तकनीक की ताकत के मुरीद हैं। नई तकनीक से अवगत होना और जनयोजनाओं के लिए उसका इस्तेमाल वह बखूबी जानते हैं। तभी तो उनके हर भाषण-संबोधन में तकनीकी विकास पर जोर होता है। लालकिले की प्राचीर से भी मोदी ने ‘ई-गवर्नेंस, इजी गवर्नेंस’ की बात कही थी। अपने इस वादे को निभाते हुए सरकार ने विभिन्न परियोजनाओं वाले ‘डिजिटल इंडिया’ कार्यक्रम को मंजूरी दी और इसके लिए एक लाख करोड़ रुपये भी दिए। इसका लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि सरकारी सेवाएं नागरिकों को इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से उपलब्ध हों और लोगों को नवीनतम सूचना व संचार प्रौद्योगिकी का लाभ मिले। ‘डिजिटल इंडिया’ के तहत सरकार का लक्ष्य आईसीटी ढांचे का निर्माण करना है, जिससे ग्राम पंचायत स्तर पर हाईस्पीड इंटरनेट उपलब्ध कराया जा सके। स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी सरकारी सेवाएं मांग के अनुरूप उपलब्ध हों और डिजिटल माध्यम से साक्षरता के जरिए नागरिकों को सशक्त बनाया जा सके। राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस प्लान के बदले स्वरूप में पेश ‘डिजिटल इंडिया’ परियोजना के तहत ब्रॉडबैंड हाइवे, हर जगह मोबाइल कनेक्टिविटी, सार्वजनिक इंटरनेट एक्सेस, ई-गवर्नेंस, सभी के लिए सूचना, इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण, नौकरियों के लिए आईटी आदि शामिल हैं। मोदी सरकार अपने उद्देश्य में कितना सफल हो पाएगी, यह इस वक्त तो नहीं कहा जा सकता लेकिन इतना तो तय है कि बदलाव की एक सकारात्मक शुरुआत हो चुकी है जो देश और जन को एक नई दिशा देगा।
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| नवोदय टाइम्स के 2 सितंबर 2014 के अंक में प्रकाशित। |
